इस संग्रह में संकलित रचनाओं को पढ़ते हुए लक्षित किया जा सकता है की ये ग्राम-अभ्युदय' की कामनाओं से जुडी है | गांधीजी ने जिस आखिरी आदमी के आशीर्वाद की कामना की थी और जिस आदमी की लिए 'स्वराज्य' की बात की थी, ग्राम-अभुदय का सरोकार उससे था | राष्ट्रनेताओं ने इसी के अर्ध-नग्न शरीर के लिए सूत काटा था | मैथिलीशरण गुप्त ने उल्लासित होकर कहा था, 'अहा! गरमी जीवन भी क्या है' और पन्त ने असीम अनुराग के साथ लिखा - 'भारत माता ग्रामवासिनी | ये वे दिन हैं जब 'गाँव और किसान' अर्थशास्त्र के केंद्र में था|
इस पुस्तक के गीतों में उसी चिरंतन आशीर्वाद से रचा-बुना सपना है जो सब सम्तावादियों और उनके शुभचिंतकों का रहा है | अभिध्यप्रदान गीतों में उस नए समाज, नई संस्कृति, समय के सुदिनो की भविष्यवाणी भी है | 'नया' इन कविताओं का बीज शब्द है जो बार-बार आता है | स्वयं कवी के शब्दों में, 'नया' शब्द मेरे लिए औपनिवेशिक दासता से मुक्ति का प्रतीक था | मेरे लिए नए का अर्थ था शोषण-मुक्त व्यवस्था, सामंतो के उत्पीरण से छुट्टी, प्रेम करने की आजादी, लोकतंत्र इत्यादि |' इसी नए का आहवान करती यह कवितायेँ काव्य-प्रेमी पाठकों को एक विशिस्ट आस्वाद से परिचित कराएंगी |
यह पुस्तक राजकमल की वेबसाइट पर उपलब्ध है http://www.rajkamalprakashan.com/index.php?p=sr&Uc=15813
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ReplyDeleteइसके अभाव में यहाँ प्रकाशित तमाम पुराने पोस्टों में नेविगेशन असंभव है.
Ravi ji,
ReplyDeleteAapka sujhaav bilkul sahi aur accha hai. Ab se aapko rajkamal ke blog par archive link milenge. Ek acche sujhaav ke liye bahut dhanywaad.