Tuesday, May 17, 2011

प्रख्यात युवा उपन्यासकार मनीषा कुलश्रेष्ठ से वार्ता


मनीषा कुलश्रेष्ठ की नयी पुस्तक 'शिगाफ' राजकमल से अभी अभी प्रकाशित हुई है | इस पुस्तक के बारे में पढ़ें राजकमल की वेबसाइट पर http://www.rajkamalprakashan.com/index.php?p=sr&Uc=12904  
ईमेल - marketing@rajkamalprakashan.com

9 comments:

  1. मनीषा जी वर्तमान कहानी-उपन्यासकारों में मेरी सबसे पसंदीदा हैं| "कुछ भी तो रूमानी नहीं" पढ़ने के बाद से ऐसा जुड़ा उनकी लेखनी से कि बस अब तो इंतजार रहता है| वैसे "एडोनिस का रक्त और लीली फूल" ने तनिक निराश किया, लेकिन फिर "शिगाफ़" ने एकदम से संभाल लिया उस नैराश्य को| कश्मीर में रहते हुये शिगाफ़ के पन्ने-दर-पन्ने से गुजरना अद्भुत अनुभव था|

    इस साक्षात्कार के जरिये उन्हें थोड़ा सा और जानना अच्छा लगा|

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  2. मनीषा जी निस्संदेह आधुनिक कथाकार लेखिकाओं में एक जाना पहचाना नाम हैं !उन्होंने स्वयं कि साहित्यिक रूचियाँ/द्रष्टि एवं महिला एवं पुरुष उपन्यासकारों के लेखन में संवेदनात्मक साम्यता/विभेद को बारीकी से विश्लेषित किया है और एक आधुनिक लेखन कि चुनौती भी ''दूसरों के भीतर बैठकर लिखने की ....!अच्छी बातचीत !राजकमल प्रकाशन की व्यवस्थात्मक कार्यप्रणाली अपेक्षाकृत काफी सुगठित है !पुराने श्रेष्ठतम साहित्य कि उपलब्धता और नए रचनाकारों से सरोकार और प्रोत्साहन निस्संदेह प्रसंशा योग्य है !उक्त प्रकाशन गृह कि अब समूह(अन्य दो उत्कृष्ट प्रकाशन ग्रहों के साथ मिलकर ) कार्य करने कि योजना सचमुच एक सराहनीय कदम है पाठकों /लेखकों के लिए !बधाई एवं शुभकामनायें ...

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  3. वंदना जी, धन्यवाद | आपके प्रोत्साहन भरे शब्द देखकर बहुत अच्छा लगा |

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  4. you could have spoken more about Shigaf Its a wonderful experience to read that novel. I liked it very much and looking forward for something like this.

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  5. बहुत बेबाकी से सटीक बातें कही हैं। एक संजीदा लेखिका को अपने लेखन और अपने समय को इसी तरह लेना चाहिये। शुभकामनाएं।

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  6. मनीषा जी, एक अच्छी और आत्मविश्वास से भरी बातचीत के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई.....आपकी रचनाओं को पढ़कर ऐसा तो लगता है कि किसी परिपक्व रचनाकार की रचनाएँ हैं लेकिन रचनाकार आत्मविश्वास से इतना भरा हुआ और इतना परिपक्व है, यह साक्षात्कार देखकर लगा....इस साक्षात्कार को देखकर मेरी उम्मीद बढ़ गयी है और ऐसा लगने लगा है कि जल्दी ही आपकी आत्मकथा पढ़ने को मिलेगी.....

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  7. आत्मकथा लिखने का बहुत मन है, पर अभी थोड़ी जल्दी है, डायरीज़ मेरे पास बहुत हैं...बचपन की कच्ची भाषा से लेकर आज तक....मनीषा कुलश्रेष्ठ

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  8. असली चुनौती है दूसरों के भीतर बैठकर लिखना --बिलकुल सही बात कही आपने,
    मनीषा जी ।

    मल्लिका मुखर्जी

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