राजकमल प्रस्तुत करते हैं एक नया उपन्यास 'अर्थचक्र' जो शीला झुनझुनवाला द्वारा लिखा गया है |
यह उपन्यास 'अर्थ' के उस 'चक्र' को सम्भोदित करता है जो हमारे समय की नाभि में स्थित है और जिससे हमारे समाज का लभग हर अंग परिचालित हो रहा है | यह उपन्यास इस दुश्चक्र को आइना दिखाते हुए उसके सामने मानव-अस्तित्व के उन मूल्यों को स्थापित करता है जो हर युग, और हर संकट को लांघकर मनुष्य की झोली में विरासत की तरह बाकि रह जाते हैं |
उपन्यास की कथा समकालीन सामाजिक जीवन के नैतिक स्खलन, शासन-तंत्र की अर्थ-केन्द्रित संवेदनहीनता, व्यवस्था और असामाजिक तत्वों की आपसी टकराहटों तथा कदम-कदम पर उपस्थित प्रलोभनों और बहकावों से होते हुए हमें एक रोमांचकारी अनुभव-जगत में ले जाती है | और कई कोनो से धनलिप्सा पर आधारित इस व्यवस्था के शरनशील कोनो-अंतरों को उजागर करती है |
उपन्यास का नायक आकाश और जीवन के सामाजिक-नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए उसका संघर्ष बार-बार हमें एक भावनात्मक सोच प्रदान करते हैं |
शासन-तंत्र की अर्थ-केन्द्रित संवेदनहीनता, का क्या आशय है?
ReplyDeleteअरे भाई, इतनी अच्छी साइट है, इसमें कम से कम साइड बार में या नीचे कहीं पर आर्काइव (पुराने तमाम पोस्टों की लिंक जहाँ से दिखें) लिंक तो लगाएँ. यकीन मानिए, यह बेहद आसान है. कोई समस्या हो तो पूछें!
ReplyDeleteइसके अभाव में यहाँ प्रकाशित तमाम पुराने पोस्टों में नेविगेशन असंभव है.