Saturday, June 4, 2011

'तट पर हूँ पर तटस्थ नहीं'



कुंवर नारायण हमारे समय के उन अप्रितम लेखकों में से हैं, जिन्होंने हिंदी कविता में ही नहीं बल्कि पुरे भारतीय साहित्य में अपनी एक सशक्त और अमिट पहचान बनायी है |

'तट पर हूँ पर तटस्थ नहीं' पिछले एक दशक में कुंवर नारायण द्वारा विभिन्न लेखकों, कवियों, पत्रकारों को दी गयी भेंटवार्ताओं का एक प्रतिनिधि चयन है | कुछ भेंटवार्ताओं में संवाद हैं, कुछ में अपने साहित्य और समय के प्रश्नों से गहराई में जाकर जूझने की कोशिश है और कुछ में प्रश्नों के सीधे उत्तर हैं |

कुंवर नारायण हिंदी के उन चुनिन्दा लेखकों में से हैं जो साक्षात्कार विध्या को धैर्य और पर्याप्त गंभीरता से लेते हैं | यही कारन है की उनकी भेंटवार्ताओं के किसी भी चयन का महत्त्व उनकी समीक्षा पुस्तकों से कम नहीं है | उनकी कुछ लम्बी भेंटवार्ताओं उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी उनकी समीक्षाएं या विचारात्मक निभंध | 

'तट पर हूँ पर तटस्थ नहीं' का संपादन विनोद भारद्वाज ने किया है जो कुंवर नारायण की प्रारंभिक भेंटवार्ताओं के संग्रह 'मेरे साक्षात्कार' का भी संपादन कर चुके हैं | पिछले चार दशकों से भी अधिक समय से विनोद भारद्वाज कुंवर नारायण के निकट संपर्क में रहे हैं | वह उनके समय-समय पर कई लम्बी भेंटवार्ताओं का संयोजन भी कर चुके हैं | यह पुस्तक हिंदी में ही नहीं, भारतीय साहित्य के सभी अध्येताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगी | कुंवर नारायण के जीवन और साहित्य दोनों का ही एक अच्छा परिचय इस पुस्तक में मौजूद है | 

यह पुस्तक राजकमल की वेबसाइट पर उपलब्ध है  http://www.rajkamalprakashan.com/index.php?p=sr&Uc=15683
 
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